Rakesh rakesh

Add To collaction

छोटी सी शीतल

नगरकोट ज्वाला जी के मंदिर के पास एक पहाड़ पर छोटा सा गांव था। इस गांव में पार्वती अपनी पुत्री शीतल के साथ रहती थी। पार्वती का पति जुआरी शराबी अयाश   किस्म का व्यक्ति था। वह  एक दिन अपने गांव का मकान बेचकर पार्वती और अपनी पुत्री को छोड़कर दूसरे शहर में भाग जाता है। गांव का दूध बेचने वाला धनीराम नाम का व्यक्ति  पार्वती को अपनी गाय भैंसों की देखभाल के लिए रख लेता है। पार्वती और उसकी पुत्री को गाय भैंसों के तबेले में रहने की जगह भी देता है। धनीराम सज्जन पुरुष था, पर उसकी पत्नी लालची और चिड़चिडे स्वभाव की थी। शीतल की आयु 9 वर्ष की थी, पर वह 9 वर्ष की आयु में भीबहुत ही समझदार थी। शीतल हर मंगलवार को अपनी मां के साथ ज्वाला जी मंदिर जाती थी। मंदिर का पुजारी शीतल के चंचल और समझदार स्वभाव की वजह से उसे बहुत पसंद करता था। इस वजह से हर मंगलवार को बहुत सा प्रसाद शीतल को खाने के लिए देता था।  एक दिन मंदिर में भंडारा हो रहा था। शीतल पुजारी से पूछती है "आज आप सबको भंडारा क्यों खिला रहे हो" पुजारी कहता है "माता ने  अपने किसी भगत की मनोकामना पूरी कर दी है। इसलिए उसने माता का भंडारा किया है।" शीतल फिर कहती है 

"क्या माता सबके सारे दुख संकट खत्म कर सकती है।" पुजारी कहता है "माता हम सब की मां है। और मां अपने बच्चे को कभी भी दुखी नहीं देख सकती है। अब कुछ ही दिनों के बाद नवरात्रि आने वाले हैं, जो इन नवरात्रों में माता के व्रत रखता है। और 9 दिन माता की सच्चे मन से पूजा करता है। माता रानी उसकी सब मनोकामना पूरी कर देती है।" शीतल उसी दिन से शरद नवरात्रों का रोज इंतजार करने लगती है। और फिर एक समय नवरात्रों आ जाते है। नवरात्रों के   एक दिन पहले माता की चौकी लगाने का सामान इकट्ठा करने के लिए, सुबह सुबह घर से जल्दी उठकर निकल जाती है। सबसे पहले गांव के कुमार के पास जाती है। माता की मूर्ति बनवाने के लिए और एक दिया लेने के लिए। शीतल के पास पैसे नहीं थे। इसलिए कुमार कहता है "मैं तुम्हें  माता की मूर्ति बनाकर दे दूंगा और एक दिया भी दूंगा, पर तुम्हें  सबसे पहले जंगल से मेरे गधे के खाने के  लिए हरी हरी घास और हरे हरे पत्ते लाने होंगे।  छोटी सी शीतल उसी समय जंगल चली जाती है। और गधे के खाने के लिए हरे हरे पत्ते लेकर आती है। और गधे को खाने के लिए दे देती है। कुम्हार उसे माता की मूर्ति और एक बड़ा सा दिया दे देता है।  फिर शीतल  एककिसान के पास जाती है। सरसों और राई के बीज लेने के लिए  जिससे कि वह सरसों राई को  पीसकर तेल निकालकर माता की ज्योतजला सके। किसान छोटी सी शीतल से 10 गड्डी सरसों कटवाता है। और छोटी सी शीतल को उसमें से एक ही गड्डी देता है। उसके बाद शीतल 
रूई    के लिएकपास के पेड़ को ढूंढने निकल जाती है। रुई के लिए उसे कपास का पेड़ मिलता है। उस कपास के पेड़ पर एक लंगूर बैठा हुआ था। शीतल के कुछ भी कहे बिना कुछ भी करें बिना वह  लंगूर कपास के फूल तोड़ तोड़कर शीतल के आगे फेंक देता है। शीतल उनको इकट्ठा करके उसमें से रूई  निकाल लेती है। फिर  शीतल  बढ़ईके पास जाती है। माता की लकड़ी की चौकी बनवाने के लिए। बढ़ाई शीतल से कहता है "मैं तुम्हें माता की चौकी बना कर दे दूंगा, पहले मेरे इस लकड़ी के बरोदेको झाड़ू से इकट्ठा करके  फेंक कर आओ। शीतल लकड़ी के बुरादे को इकट्ठा करके फेंक आती है। बढ़ई  उसे एक छोटी सी माता की चौकी बनाकर दे देता है। उसके बाद शीतल एक दुकानदार के पास जाती है। माता की चुन्नी नारियल और सिंगार का सामान लेने। वह दुकानदार कहता है "पहले मेरे घर के सारे  कपड़े धोने पड़ेंगेऔर बर्तन भी धोने पड़ेंगे।" शीतल उसके घर के सारे  कपड़े धो देती है, बर्तन मांज देती है। वह दुकानदार छोटी सी शीतल को चुन्नी नारियल माता का सिगार दे देता है। शीतल को घर पहुंचते-पहुंचते बहुत रात हो जाती है। इस वजह से शीतल की मां उससे बहुत नाराज होती है, पर शीतल के हाथ में माता की पूजा का सामान देखकर वह चुप हो जाती है। उस रात शीतल पूरे दिन की थकी हुई थी, इसलिए बिना खाना खाए ही सो जाती है। और दूसरे दिन सुबह जल्दी उठकर नवरात्रि का व्रत रखकर माता की चौकी लाकर चौकी के पास 9 दिन के लिए बैठ जाती है। धनीराम की पत्नी ने भी माता के नवरात्रि के व्रत रखे थे, पर वह व्रत के बहाने घर का कोई भी काम नहीं करती थी। और शीतल की मां को बार-बार घर का काम करने के लिए आवाज देकर बुलाती रहती थी। और वह सुबह से ही दूध फल घी रात तक खाती रहती थी।5 दिन के बाद शीतल की हालत को देखकर शीतल की  मां
धनीराम की पत्नी से दूध फल शीतल के खाने के लिए मांगती है, पर धनीराम की पत्नी साफ मना कर देती है। आखिरी नवरात्रि वाले  दिन शीतल भूखी प्यासी  रहने की वजह से बेहोश हो जाती है। शीतल की मां गांव के कुछ लोगों के साथ शीतल को अस्पताल ले कर  जाती है। और अस्पताल के गेट पर शीतल  का पिता मिल जाता है। वह पहले अपनी पत्नी पार्वती से माफी मांगता है, फिर शीतल की हालत के बारे में पूछता है। और उसी समय शीतल को दूध फल देसी घी खिलाता है। शीतल का पिता कहता है " पहले  नवरात्रि पर मैंने कुछ बदमाशों से किसी व्यापारी के बच्चे की जान बचाई थी। इस वजह से पुलिस  और उस व्यापारी ने मुझे बहुत सम्मान और इज्जत दी। मैं  उस दिन समझ गया, कि बुरे कर्म से तो अपमान ही होता है। और किसी दिन जान भी जा सकती है।" फिर बताता है "कि व्यापारी ने मुझे बहुत सा धन इनाम में दिया और अपनी कंपनी में एक अच्छी नौकरी भी  दी । पिता की बातें सुनते सुनते शीतल  को होश आ जाता है। वह अपने पिता की यह सारी बातें  सुनने के बाद तेज तेज आवाज में चिल्ला चिल्ला कर कहती है "जय माता दी" "जय माता दी" 
"जय माता दी" उसके साथ उसके पिता मां और गांव के लोग भी जयकारा लगाते हैं, "जय माता दी" "जय माता दी" "जय माता दी" शीतल के पिता मां और शीतल घर पहुंच कर माता की पूजा करते हैं। और कन्याओं और बहुत से बच्चों का भंडारा करते हैं।

   15
4 Comments

shweta soni

27-Sep-2022 11:31 AM

Very nice

Reply

Punam verma

27-Sep-2022 08:43 AM

सुंदर रचना

Reply

Abhinav ji

27-Sep-2022 07:38 AM

Very nice👍

Reply